Wednesday, April 17, 2013

मुख्तारनामा व वसीयतनामा


पुणे में रहते हुए वहाँ के अखबार से रूबरू हुआ.आज का आनंद के 14-4-13  अक में शरद पवार का कथन मुखपृष्ट पर था कि---एम एल ए और जनप्रतिनिधियों के अबैध निर्माण को अवश्य तोड़ा जाना चाहिए.अबैध निर्माण के खिलाफ कार्यवाही सही है,लेकिन इसमें सोच-समझ कर कदम उठाने की जरूरत है.सभी ७०% अबैध निर्माण एक साथ तोड़कर लोंगों को बेघर नहीं किया जाना चाहिए .मुंब्रा, ठाणे ,तथा दीवा में ७०% अबैध निर्माण हैं.-------इसका क्या अर्थ निकाला जाय ,यह तो लाँ मेकर,या प्रशासक जानें. लगे हाँथ यह भी कह दिए कि गैर कानूनी निर्माण के बारे में जन-प्रतिनिधियों व अफसरों पर कार्यवाही की जाए.
पुणे में मल्टी स्टोरी भवनों की भरमार है.देखकर लगता है कि क्या इसकी तरफ अफसरों की भृकुटी नहीं तनती है.सभी तो सरकश जन प्रतिनिधि या उनके गुर्गों की नहीं होगी. होगी तो भी अफसरों को उनके साथ बहती गंगा में हाँथ अवश्य धोना चाहिए.अभी हाल में बंबई में एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग गिरी थी . मात्र ७२ निर्दोष अपने प्राण गवाएं थे.अब अफसरों ने लगे हाँथ चमड़े का सिक्का चलाना शुरू किया.टाईम्स आफ इंडिया में छपा है कि पिंपनी- चिंचवाड़ म्युनिसिपल कारपोरेशन ने बहुत सारी एजेंसी को अबैध निर्माण के जांच का जिम्मा दे दिया है.एक स्ट्रक्चरल आडिट अलग से कराया जा रहा है कि अबैध निर्माण जिन्दगी के लिए खतरनाक है कि नहीं.किसी भी फ़्लैट को खरीदने के पहले PCMC की वेबसाइट देखने की ताकीद की गयी है. PCMC का दावा है कि सभी अबैध बिल्डिंग वेबसाइट पर डाल (दर्ज कर ) दी गयी है. अब मल्टी स्टोरी के मालिक अफसरों के पैरों तले आ गए .
टाईम्स आफ इंडिया में महाराष्ट्र स्टेट लैंड रिकार्ड्स बिभाग के बारे में लिखा है कि उसके निदेशक के अनुसार उन्हें और स्टाफ ,और अच्छी मशीनरी चाहिए जिससे लैंड सर्वे को अच्छी तरह सम्पन्न कर सकें. पुणे,थाणे,अमरावती,और नासिक इत्यादि शहरों के लिए Electronic Total Station (E.T.S)equipment चाहिए जिससे शून्य-रहित गलती बिना जमीन का मैप तैयार हो सके.उनके अनुसार दाखिल-खारिज के लिए E- mutation software लगाया गया है.लैंड रिकार्ड्स  को अद्यावधिक करने के लिए  E-chavdi software लग गया है. लैंड के एकदम सही सर्वे के लिए E-survey पुन: हो रहा है. (E.T.S)equipment से गलती रहित मैप तैयार किये जा रहें हैं.
 दूसरी तरफ दैनिक आज का आनंद के अक में-----कब रूकेगी यह सरकारी लूट??शीर्षक में लिखा है कि सन २०११ में प्रापर्टी रजिस्ट्रेशन और स्टाम्प ड्यूटीज में जो चोरी और रिश्वत खोरी हुई वह (महाराष्ट्र में)१२५३४ करोड़ रूपये की रही,यानी हर साल करीब १० हजार करोड़ रूपये से ज्यादा का भ्रष्टाचार इस क्षेत्र में होता है. पिछले एक दशक में एक लाख करोड़ रूपये से अधिक इस करप्सन में डूबे.......................
मीडिया और समाज का सोशल आडिट इन अफसरों की कारस्तानी बखूबी जानती है.
अपना अनुभव रहा है कि अनेक सर्कुलर,शासनादेश इत्यादि करप्सन को बढ़ावा ही देते हैं. अभी बिहार में एक मुख्तारनामा पंजीकृत कराने निबंधक के पास गया,उसमें लिखने वाला अपनी लड़की की लड़की को जमीन बेचने का अधिकार देते हुए उक्त को निबंधित कराना चाह रहा था. उप-निबंधक ने कल मिलने के लिए कहा. न होने से परेशान मैंने कुछ वकीलों से परामर्श किया,जिससे नाराज हो उप-निबंधक अपने आतंरिक गोपनीय अनेक सर्कुलर,शासनादेश का हवाला देकर निबंधन से एकदम इनकार कर दिया. लिखित भी कुछ देने से अपनी असमर्थता जाहिर किया. लिखित इनकार के अभाव में अपील का भी कोई अधिकार आपके पास नहीं है.
 मुख्तारनामा रजिस्ट्रेशन की सरकारी लूट उत्तर-प्रदेश में कम नहीं है,जब कि मुख्तारनामा रजिस्ट्रेशन एक्ट १९०८ की धारा १८ में निबंधित कराना बैकल्पिक (optional) रखा गया है.इसे आप कहीं भी ,किसी भी रजिस्ट्री कार्यालय में निबंधित करा सकते है. यह नोटरी द्वारा भी किया जाता है,जो बिधिसम्मत है. मई २००२ में उत्तर-प्रदेश में रजिस्ट्रेशन एक्ट १९०८ की धारा ५१ में कुछ क्लाज जोड़कर यह सुनिश्चित किया गया कि अचल संपत्ति से सम्बंधित मुख्तारनामा बुक नम्बर १ में रक्खे जायेंगे,जिसका सीधा कानूनी अर्थ है कि अचल संपत्ति के निबंधन का क्षेत्राधिकार जिस उप-निबंधक का होगा उसी के कार्यालय में उक्त अचल संपत्ति से सम्बंधित मुख्तार नामा रजिस्ट्री होगा.कुछ नियम वगैरह द्वारा कुछ प्रासंगिक शब्द इंडेक्स इत्यादि हेतु सर्कुलर,शासनादेश द्वारा करना था जो आज तक नहीं हुआ.
यही हाल वसीयतनामा की भी है.वसीयतनामा का परीक्षण करते हुए उप-निबंधक कहने लगा कि इसमें लिखनेवाला का पता उत्तर प्रदेश का है अत: उत्तर-प्रदेश के उपनिबंधक ही इसको पंजीकृत कर सकता है.आपत्ति-पत्र माँगने पर न देने पर अड गया. इस हठ के बाद भी मैं जिला-अधिकारी के यहाँ फरियादी बन कर गया. मेरे पहले ही उन्हें अवगत कराया जा चुका था कि एक फरियादी याचक अपनी ब्यथा-कथा लेकर आयेगा,जिसको  रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा १८ के अंतर्गत जैसा उप-निबंधक ने समझाया है,वहीं सही है.निरंकुश,मदांध,मदमस्त अफसर ने एक मिनट में उक्त एक्ट की १८ धारा की ब्याख्या किया कि वसीयतनामा,मुख्तारनामा का रजिस्ट्रेशन स्वेक्षिक,बैकल्पिक है,जिसको चाहे तो उप-निबंधक नहीं कर सकता है.क़ानून की धारा की यह ब्याख्या मुझे आश्चर्य चकित किया .न्यायिक ब्याख्या हेतु  न्यायालय में जाने की धमकी सुन तो वह और भड़क गया तथा कहने लगा कि न्यायालय में तो एक ही धारा कि भिन्न –भिन्न ब्याख्या कानूनी किताबों में भरी पडी हैं,यहाँ तक कि एक ही मुकदमों में मा० ५ जजों की बेंच में ३ की ब्याख्या कुछ रहती है तो २ की कुछ. में क़ानून, न्याय की यह ब्याख्या सुन हतप्रभ था. सिद्धांत व ब्यवहार का इतना बड़ा अंतर आये दिन प्रशासनिक कार्यालयों में देखने को मिल जाएगा. ज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है,तथा सत्य परेशान हो सकता है परास्त नही हो सकता ,केवल किताबों में ही हैं
E-Gov,कम्प्यूटरीकरण इत्यादि ही इसे अफसरों की निरंकुशता पर लगाम लगा सकते हैं. CNBC आवाज चैनल पर मोदी का भाषण लोकतंत्र,गवर्नमेंट और गवर्नेंस पर आ रहा था .उनका कथन था कि इस जमीन पर उस आदमी की कार्य-प्रणाली सबसे निकृष्ट है जो फरियादी को याचक मानता है और अपने को शासक .इस मानसिकता और कार्य को सबसे जघन्य अपराध मानना चाहिए.गवर्नेंस में अब जाकर कुछ सेवा को निश्चित समय सीमा के अन्दर देने की बाध्यता क़ानून में की गयी है,लेकिन वह नाकाफी है. लोकतंत्र,गवर्नमेंट और गवर्नेंस उस दिन शत-प्रतिशत सफल होगा जिस दिन अफसर हाँ कहना सीख जाएगा,या उसको सिखा दिया जाएगा .

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