जमीन के सम्बन्ध में इतने नियम,अधिनियम,शासनादेश,सर्कुलर और बिनियम हैं कि जमीन इसके मालिक की न होकर उक्त कानूनों के बीच फुटबाल हो गयी है. इन्हीं तमाशों को देखने की कोशिश की गयी है.
आबंटन,विवेकाधीन शक्तियों =न्यायपालिका ने सरकार के
कई गैरकानूनी कदमों पर अपनी मुहर लगाई थी।
विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के साथ-साथ न्यायपालिका को भी आड़े हाथ लिया। कोर्ट ने माना है कि इस मामले में न्यायपालिका भी दूध की धुली नहीं है। कोर्ट मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भोपाल में कुशाभाई ठाकरे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को 2006 में भोपाल स्थित बेशकीमती 39 एकड़ भूमि आवंटन के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने इस मामले में अधिकारियों के रवैए से भी नाराजगी जताते हुए सरकार को निर्देश दिया कि जमीन ट्रस्ट को सौंपे जाने से पहले इससे जुड़े सभी जरूरी दस्तावेज पेश किए जाएं। शीर्ष न्यायालय का कहना था कि शक्तियों के दुरुपयोग की बदतर स्थिति संभवत: आपातकाल के दौरान हुई, जब न्यायपालिका ने सरकार के कई गैरकानूनी कदमों पर अपनी मुहर लगाई थी। जिसमें 1976 में मौलिक अधिकारों को निलंबित करने के तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के फैसले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बरकरार रखना शामिल था। विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग के बाबत न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ की टिप्पणी थी, हां, बदतर यहां से (शीर्ष न्यायालय) हुआ। इसकी शुरुआत सत्तर के दशक में हुई। ..वर्ष 1976 में और एक बार फिर 1986 में मारूति उद्योग का विवेकाधीन आवंटन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और यहां तक कि न्यायाधीशों को भी हुआ और इसे फैसले में बरकरार रखा गया। पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर प्रसाद ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट सहित सभी लोकतांत्रिक संस्थानों के मूल्यों में पतन हुआ है। जब पीठ ने सरकारी अधिकारियों द्वारा विवेकाधीन अधिकारों का दुरुपयोग करने पर नाराजगी जाहिर की।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्टे को चेताया है कि वे उसके आदेशों की अवहेलना की कोशिश नहीं करें। जस्टिस मरकडेय काटजू तथा ज्ञान सुधा मिश्र की बेंच ने हाईकोर्ट द्वारा न्यायिक अनुशासन के सिद्धांतों के उल्लंघन की बढ़ती घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए यह चेतावनी दी है।
बेंच ने कहा, ‘न्यायिक अनुशासन के लिए जरूरी है कि हाईकोर्ट इस अदालत के आदेशों की अवहेलना की कोशिश नहीं करें। हाईकोर्टे के ऐसे अवज्ञाकारी रुख को यह अदालत बर्दाश्त नहीं करेगी।’ अदालत ने किराएदार को निकालने का आदेश इसलिए दिया था कि इमारत 100 वर्ष पुरानी थी। इसे ध्वस्त करना जरूरी था। उधर, किराएदार ने चेन्नई कॉपरेरेशन के आयुक्त से यह आदेश हासिल कर लिया कि इस इमारत को खाली करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा किराएदार को निकालने का आदेश जारी करने के बावजूद हाईकोर्ट ने इस पर स्थगन दे दिया था।
इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने एक मामले में अपने आदेश पर मद्रास हाईकोर्ट द्वारा स्थगन देने के बारे में स्पष्टीकरण मांगा। अदालत ने चेन्नई कॉपरेरेशन के आयुक्त को भी कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया।
शीर्ष अदालत का कहना था कि आयुक्त ने याचिकाकर्ता से हाथ मिला लिए। अत: उन्होंने 18 जून 2010 को एक अवमाननापूर्ण आदेश जारी किया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद विवादित परिसर ध्वस्त नहीं करने को कहा गया था।
शीर्ष कोर्ट ने निर्देश दिया कि किराएदार डीएम बेलगामवाला को विवादित इमारत से फौरन निकाला जाए। यदि कोई आदेश के अमल में बाधा पहुंचाएगा तो निश्चित तौर पर जेल भेज दिया जाएगा।
बेंच ने कहा, ‘न्यायिक अनुशासन के लिए जरूरी है कि हाईकोर्ट इस अदालत के आदेशों की अवहेलना की कोशिश नहीं करें। हाईकोर्टे के ऐसे अवज्ञाकारी रुख को यह अदालत बर्दाश्त नहीं करेगी।’ अदालत ने किराएदार को निकालने का आदेश इसलिए दिया था कि इमारत 100 वर्ष पुरानी थी। इसे ध्वस्त करना जरूरी था। उधर, किराएदार ने चेन्नई कॉपरेरेशन के आयुक्त से यह आदेश हासिल कर लिया कि इस इमारत को खाली करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा किराएदार को निकालने का आदेश जारी करने के बावजूद हाईकोर्ट ने इस पर स्थगन दे दिया था।
इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने एक मामले में अपने आदेश पर मद्रास हाईकोर्ट द्वारा स्थगन देने के बारे में स्पष्टीकरण मांगा। अदालत ने चेन्नई कॉपरेरेशन के आयुक्त को भी कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया।
शीर्ष अदालत का कहना था कि आयुक्त ने याचिकाकर्ता से हाथ मिला लिए। अत: उन्होंने 18 जून 2010 को एक अवमाननापूर्ण आदेश जारी किया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद विवादित परिसर ध्वस्त नहीं करने को कहा गया था।
शीर्ष कोर्ट ने निर्देश दिया कि किराएदार डीएम बेलगामवाला को विवादित इमारत से फौरन निकाला जाए। यदि कोई आदेश के अमल में बाधा पहुंचाएगा तो निश्चित तौर पर जेल भेज दिया जाएगा।
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आदर्श हाउसिंग सोसाइटी
यह जमीन सेना
के कब्जे
में कई सालों से थी और इस जमीन
के मालिकाना हक के बारे में
सेना ने रक्षा मंत्रालय को धोखे
में रखा।
रक्षा मंत्रालय ने भी 2003 में एक सवाल के दौरान संसद
को गुमराह
किया। यही
नहीं, बिल्डिंग के जरिए कोस्टल
रेग्युलेशन जोन
नियम का भी उल्लंघन किया गया
है।
मामला सामने आते
ही लीपा-पोती काम
भी शुरू
हो गया
है। हाउसिंग सोसाइटी ने फ्लैट ऑनर्स
का नाम
बताने से इनकार कर दिया है।
महाराष्ट्र सरकार
ने भी यह कहा
है कि उसके पास
इस बिल्डिंग का कोई
विवरण नहीं
हैं।
मुंबई के कोलाबा इलाके में स्थित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के100 मीटर ऊंचे इस अपार्टमेंट को कई सरकारी नियमों और कानूनों को ताक पर रखकर बनाया गया है। यही नहीं, WNC(मुबंई हेडक्वॉर्टर वेस्टर्न नेवल कमांड) ने इस इमारत को सुरक्षा के लिए खतरा बताया है और सेना व सरकार से इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की गुजारिश की है।
जमीन किसकी यह एक यक्ष प्रश्न-
·
इस इमारत का मालिक कौन है यह अभी तक
किसी को नहीं पता। आदर्श घोटाले की प्राथमिक जांच कर रही सीबीआई सर्वे ऑफ इंडिया
की एक पुरानी योजना को खंगाल कर इस बात का पता लगाने में जुटी हुई है कि इस इमारत
का मालिक कौन है। सीबीआई ने महाराष्ट्र सरकार से भू-अभिलेखों की
मांग की है ताकि 1957 की एक सर्वे ऑफ इंडिया योजना के माध्यम
से रक्षा मंत्रालय के दावे को परखा जा सके। इस योजना में दिखाया गया है कि आदर्श
की जमीन का मालिकाना हक एक स्थानीय सैन्य प्राधिकरण के पास है। सीबीआई के एक वरिष्ठ
अधिकारी ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने एक नक्शा दिया है जिसे दिखा कर दावा किया गया
कि जिस जमीन पर आदर्श सोसाइटी की इमारत का निर्माण हुआ है वह उसी की है। इस दावे
की परख के लिए हमने राज्य सरकार से भू-अभिलेखों की मांग की
है। अधिकारी ने कहा कि इस बीच, राज्य सरकार भी जमीन पर अपना
दावा जताती रही है और यह कहती रही है कि सेना ने इस जमीन पर कब्जा किया है।
मुंबई में सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो की जमीन
1971 से
ही रक्षा विभाग ने 12 हजार
66.20 वर्ग मीटर की इस जगह पर निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी। डिफेंस का कहना था कि यहां पर निर्माण ऑर्डिनेंस की सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन इस पर एक इमारत बनी और केस चला जिसमें 2001 में बिल्डर के पक्ष में फैसला आया लेकिन डिफेंस ने इस पूरे मामले को हाईकोर्ट में चैलेंज कर दिया और मामला अभी तक पेंडिंग है।लेकिन इस प्लॉट के नए खरीदार धीरज डेवलपर को डिफेंस की ओर से एक एनओसी मिल गई जिसमें सुरक्षा को ताक पर रखकर आलीशान इमारत खडी करने की इजाजत दी गई।
वहीं, जमीन की तलाश कर रहे लोक ग्रुप को भी मलाड ऑर्डिनेंस की ही 66 हजार 630 वर्ग मीटर की जमीन पर निर्माण की इजाजत दे दी गई।
मुजफ्फरपुर बिहार में सामाजिक सरोकारों से संबंधित एक व्यवस्था तथाकथित
समाजसेवियों के लिए मेवा बन चुकी है। वे सामाजिक कार्यो के लिए पहले तो महज एक-दो
रुपये की सालाना राशि पर लीज पर जमीन-मकान हासिल कर रहे हैं। इसके
बाद व्यावसायिक गतिविधियां अंजाम देकर अपना कल्याण कर रहे हैं। उत्तर बिहार के
तकरीबन हर शहर में यह नजारा आम है। मोतिहारी में जिला प्रशासन ने 145 लोगों
को एक या दो रुपये ही सालाना शुल्क पर सरकारी जमीन लीज पर दे रखी है। आवंटी (व्यक्ति
या संस्थाएं)
अस्पताल, पुस्तकालय और पार्क के नाम पर मिली जमीन
पर व्यावसायिक गतिविधियां संचालित कर सालाना लाखों की कमाई कर रहे हैं। एक सैकड़ा
से ज्यादा लोग तो सरकारी जमीन पर अतिक्त्रमण कर न केवल आवास बना चुके हैं, बल्कि
कई व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी चला रहे हैं। मधुबनी जिला मुख्यालय सहित जिले के
विभिन्न हिस्सों में गोशाला, जिला परिषद एवं नगर निकायों की बेशकीमती
जमीन व मकान हैं,
जिसे औने-पौने दाम पर व्यावसायिक व अन्य वगरें के
लोग लीज पर लिए हुए हैं। इन जमीन व मकान से लोग मालामाल हो रहे हैं और उन्हें कभी-कभी
नोटिस भेजकर खानापूरी की जा रही है। पश्चिमी चंपारण का भी यही आलम है। सीतामढ़ी
जिले में डुमरा सरकारी बस पड़ाव के निकट पुस्तकालय के लिए जमीन उपलब्ध कराई गई थी, पर
पुस्तकालय का संचालन कब का बंद हो चुका है। जिले में कितनी सरकारी भूमि है और
कितनी जमीन किस-किस को समाजिक और धार्मिक कार्य के लिए शासन द्वारा आवंटित की गई इसकी जानकारी
तक स्थानीय प्रशासन के पास नहीं है। समस्तीपुर में चिकित्सालय, पुस्तकालय, अनाथालय, विश्रामालय, सभागार
आदि सब कमाई का जरिया बने हुए हैं, पर प्रशासन की आंखें बंद हैं।
जिले में बेरोजगारों के लिए बनी स्वर्ण जयंती रोजगार योजना की दुकानें भी अब निजी
कमाई का जरिया बन गई हैं। दरभंगा नगर निगम के अधीन लहेरियासराय में स्थित कमला
नेहरू पुस्तकालय सिर्फ नाम का पुस्तकालय रह गया है। यहां बने हाल का प्रशासनिक व
अन्य उपयोग हो रहा है। पुस्तकालय बगल के एक छोटे कमरे में सिमट गया है। हसनचक के
निकट बेशकीमती जमीन भगवान भरोसे है। हद तो जिला परिषद की है। लहेरियासराय टावर, चट्टी
चौक, स्टेशन रोड सहित कई स्थानों पर इसकी दुकानों को मामूली किराये पर दिया गया है, जो
बाजार दर की तुलना में कहीं नहीं है। सरकारी राजस्व बढ़ाने के लिए कई बार प्रयास
किए गए, लेकिन किसी न
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रोहतक की
सिंधू एजूकेशन फाउंडेशन की 23
कनाल जमीन हरियाणा सरकार द्वारा जनहित के नाम पर अधिग्रहीत कर दिल्ली के एक
बिल्डर को दे दी गई। सरकार ने संस्था की 23
कनाल जमीन सन 2000 में रोहतक में
आवासीय सह व्यावसायिक सेक्टर 27
के लिए अधिग्रहीत की थी, लेकिन बाद में
इस जमीन को उद्धार गगन प्रापर्टी को जारी कर दिया गया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
ने जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना रद करते हुए हरियाणा सरकार पर ढाई लाख रुपये का
जुर्माना लगाने का फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने जुर्माने की राशि इस मामले में
दोषी अधिकारियों से वसूल करने का भी आदेश दिया है।
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ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवेलपमेंट अथॉरिटी (ग्लाडा)
अर्बन एस्टेट बनाने के लिए 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण जल्द हो जाने की उम्मीद है।18 लाख से 35 लाख रुपये वाली जमीन 2 करोड़
10 लाख से 4 करोड़ 95 लाख रुपये के भाव खरीदने के लिए राज्य सरकार के पास प्रस्ताव भी भेज दिया गया है।700 करोड़ रुपये में 200 एकड़ जमीन के टेंडर गुपचुप तरीके से पास करने के बाद ग्लाडा ने विभाग को भेज भी दिए हैं।
यद्यपि नेताओं और अधिकारियों के साथ मुनाफाखोरी में हिस्सेदारी के तयशुदा नियमों का हवाला देते हुए एजेंटों के हौसले बुलंद हैं। सम्मानजनक हो चुके दलाली के पेशे में बड़े कालोनाइजरों ने भी इसे अपना लिया है। किसानों से कौड़ियों के भाव रजिस्ट्रियां कराने और शपथपत्र लेने के बाद करोड़ों के भाव शहरियों को बेचने की व्यवस्था कर दी है। अब कालोनाइजरों और अफसरों का कॉकटेल सामने आ गया है।
ग्लाडा की एसीए ने इसकी पुष्टि भी कर दी कि जमीन दो बड़े कालोनाइजरों से खरीदी जा रही है।
ग्लाडा की एसीए ने इसकी पुष्टि भी कर दी कि जमीन दो बड़े कालोनाइजरों से खरीदी जा रही है।
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जालंधर
. शहर के नजदीकी गांव खांबरा में पंचायती जमीन बेचने के नाम पर 42 लाख की घपलेबाजी की गई है। इस घपलेबाजी के लिए जाली हस्ताक्षरों का भी सहारा लिया गया और पंचायत के कायदे-कानून को भीतोड़ा गया।
सरकारी नियम ठेंगे पर
नियमों के मुताबिक पंचायत अपने स्तर पर पंचायती जमीन की बिक्री और उसका मूल्य निर्धारण भी नहीं कर सकती। पंचायत बेचे जाने वाली भूमि का प्रस्ताव पास कर भेज सकती है और डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी तय करती है कि ये जमीन बेची जानी है या नहीं और इसका दाम क्या होगा।
नियमों के मुताबिक पंचायत अपने स्तर पर पंचायती जमीन की बिक्री और उसका मूल्य निर्धारण भी नहीं कर सकती। पंचायत बेचे जाने वाली भूमि का प्रस्ताव पास कर भेज सकती है और डीसी की अध्यक्षता में बनी कमेटी तय करती है कि ये जमीन बेची जानी है या नहीं और इसका दाम क्या होगा।
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जोधपुर शहर से सटे पाल गांव की ‘सरकार’ ने वर्ष 2000-05 की अवधि में पंचायत की बेशकीमती जमीन पर भूखंड काटकर कौड़ियों के भाव बेच दिए। पंचायत के कारिंदे किसी-किसी पर इतने मेहरबान हुए कि उन्हें भूखंड मुफ्त में ही दे दिया। काटे गए भूखंडों की कीमत उस समय पांच से साढ़े पांच करोड़ रुपए आंकी गई, जबकि पंचायत कौड़ियां ही मिलीं। जांच में सरकार को सीधे-सीधे पांच करोड़ के आर्थिक नुकसान का आंकलन किया गया।
ग्राम पंचायत पाल ने वर्ष 2000 से 2005 के बीच खसरा नंबर 433 की करीब 200 बीघा (2 लाख वर्ग गज) जमीन पर अलग-अलग साइज के करीब 245 भूखंडों का नियमन किया और पट्टे जारी किए। इसमें पहले से काबिज अथवा कब्जाधारियों से नियमानुसार शुल्क लिया गया, जबकि तथाकथित आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को निशुल्क जमीन दी गई। आज यह गांव पूरी तरह शहर का हिस्सा बन चुका है।
ग्राम पंचायत पाल ने वर्ष 2000 से 2005 के बीच खसरा नंबर 433 की करीब 200 बीघा (2 लाख वर्ग गज) जमीन पर अलग-अलग साइज के करीब 245 भूखंडों का नियमन किया और पट्टे जारी किए। इसमें पहले से काबिज अथवा कब्जाधारियों से नियमानुसार शुल्क लिया गया, जबकि तथाकथित आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को निशुल्क जमीन दी गई। आज यह गांव पूरी तरह शहर का हिस्सा बन चुका है।
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नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग, लखनऊ विकास प्राधिकरण और नए मास्टर प्लान
प्राधिकरण ने अपनी सीमा में शामिल 197 गांवों में एक छोटे से हिस्से को छोड़कर
सभी का दर्जा कृषि श्रेणी में रखा है। गांव के किसान
अपने खेत के मालिक तो रहेंगे, लेकिन अगर
उन्हें कोई नया निर्माण या विकास कार्य अपनी जमीन पर कराना होगा तो इसके लिए
उन्हें लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) से अनुमति लेनी होगी।। 197 गांवों को लेकर बन रहा नया मास्टर प्लान 'महायोजना 2021' से अलग
होगा। सूत्र बताते हैं कि
इसके बाद एलडीए समय-समय पर
भू-उपयोग परिवर्तन करके इन गांवों की
भूमि का अधिग्रहण भी
कर सकेगा।
हाईटेक टाउनशिप को लेकर सुल्तानपुर
रोड पर 1800 एकड़
भूमि की श्रेणी आवासीय होगी। एलडीए की नोटिस मोहनलालगंज, गोसाईगंज,
सरोजनीनगर, मलिहाबाद, मोहनलालगंज,
काकोरी और सीतापुर रोड पर 27 जनवरी 2009
के बाद जिला पंचायत से स्वीकृत मानचित्र के बाद हुए निर्माणों पर
एलडीए ने नोटिस दी है। इनमें डेंटल और इंजीनियरिंग कालेज
भी शामिल है। उनसे भी एलडीए से मानचित्र पास कराने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि
शहर से सटे इलाकों में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं।
प्राधिकरण क्षेत्र
'महायोजना
2021' में पहले 800 वर्ग किलोमीटर
संशोधित महायोजना में-1400
वर्ग किलोमीटर
...............
इन क्षेत्रों के
आएंगे गांव
क्षेत्र संख्या
सरोजनीनगर-50
काकोरी- 35
गोसाईंगंज - 41
मलिहाबाद- 10
मोहनलालगंज-61
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------- चंडीगढ़ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कई
याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार द्वारा गुड़गांव में
औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने व सेक्टर 35 व 36 के
लिए अधिसूचित की गई 50 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की
अधिसूचना रद कर दी है।
अधिग्रहण के बाद सरकार ने
यह जमीन निजी कंपनियों को
रिलीज कर दी थी। हाईकोर्ट ने यह आदेश गुड़गांव निवासी अनिल गक्खड़ व अन्य द्वारा जारी याचिका पर जारी किया।
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लेदर पार्क में अफसरों का फर्जीवाड़ा
लेदर पार्क में अफसरों का फर्जीवाड़ा
Source- Jagran Sat, 06 Apr 2013
जितेंद्र शर्मा, आगरा: लेदर
पार्क योजना में बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। किसानों की जमीन जबरन अधिग्रहीत
करने को अफसरों ने सरकारी दस्तावेजों में ही घालमेल कर डाला। खसरों के कागजों में
से सैकड़ों पेड़ गायब कर दिए। हाईकोर्ट को हुए संशय के बाद किसानों ने मूल कॉपी
निकलवाई, तो अधिकारियों की कारस्तानी से भी पर्दा उठ गया।
उ.प्र. राज्य औद्योगिक विकास निगम
(यूपीएसआइडीसी) द्वारा किरावली में 111 हेक्टेयर में लेदर पार्क
बनाया जा रहा है। इसके लिए तीन गांव बरौदा सदर, पाली सदर और
महुअर की जमीन 2009 में अधिग्रहीत की गई। किसान तभी से इसका
विरोध कर रहे थे। काश्तकारों ने 2010 में हाईकोर्ट की शरण ली।
याचिका के लिए किरावली तहसील से खसरों की प्रतियां निकलवाई। खसरों की वही प्रति
किसानों ने हाईकोर्ट में लगा दी। रिट संख्या 3589/2010 पर
विचारण के दौरान कोर्ट ने अब किसानों से खसरों की मूल प्रति दाखिल करने को कहा है।
किसानों ने मूल प्रतियां निकलवाई, तो अधिकारियों का फर्जीवाड़ा सामने आ गया। अब उन्हीं खसरों में पेड़ दर्शाए
गए हैं, जो अधिग्रहण के समय दी गई कॉपी में गायब थे। जिला
पंचायत सदस्य बने सिंह पहलवान ने बताया कि खसरा संख्या 44 और
66 की प्रति उन्हें मिल चुकी है। इन दो खसरों में ही लगभग सौ
पेड़ भूमि अधिग्रहण के लिए काटे गए हैं। सभी खसरों में इनकी संख्या सैकड़ों होगी।
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टीटीजेड में पेड़ों पर कागजी कफन
अधिकारियों ने हरियाली पर यह आरी ताज
ट्रिपेजियम जोन (टीटीजेड) में चलाई है। गौरतलब है कि टीटीजेड में
सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना कोई भी पेड़ नहीं काटा जा सकता। वहीं लेदर पार्क
के लिए जमीन अधिग्रहीत करने अधिकारियों ने सैकड़ों पेड़ों को कागजी कफन में छिपा कर
काट डाला।
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अफसरों पर मुकदमे की तैयारी में किसान
प्रभावित किसानों का कहना है कि अब उनके पास
सबूत है कि अधिकारियों ने किस तरफ फर्जीवाड़ा कर उनकी जमीन हथियाई है। अब वह सरकारी
दस्तावेजों में हेरफेर का मुकदमा जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कराएंगे। हाईकोर्ट
में भी इन अफसरों की गर्दन फंस सकती है। जानकारों के मुताबिक, सरकारी दस्तावेजों में हेरफेर या फर्जीवाड़ा करने पर आइपीसी की धारा 467
के तहत आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती है।
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ठाणे में
सात मंजिला एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 55 लोगों की
मौत हो गई है और 50 से ज़्यादा लोग घायल हैं.
शुक्रवार, 5 अप्रैल, 2013
पुलिस का
कहना है कि ये एक अवैध इमारत थी और वन विभाग की ज़मीन पर बनी थी.
मरने वालों में अधिकांश मजदूर हैं जो कि इमारत में ही रह रहे थे.
मृतकों में 11 बच्चे भी शामिल हैं. 20 लोग अब भी लापता हैं.
यहाँ भी वन अधिकारियों की चुप्पी
देखने लायक है.
दूसरी
तरफ चंदौली (उ०प्र०)का वाक्यात भी देखे
जंगल विभाग का जंगल राज
जागरण Fri, 05 Apr 2013
चकिया (चंदौली): जंगल विभाग जंगलराज की बानगी शुक्रवार को
देखने को मिली। ब्रिटिश हुकूमत की तर्ज पर वन भूमि पर कब्जा करने वाले आरोपियों को
विभाग के लगेज वाहन में पशुओं के समान बांधकर मुंसफ मजिस्ट्रेट के न्यायालय में
प्रस्तुत किया गया। इसे लोग बाग देख जंगल विभाग के जंगल राज पर उंगली उठाने से
नहीं चूके।
दरअसल काशी वन्य जीव प्रभाग के जयमोहनी रेंज के अमदहा
कमार्टमेंट आठ व 10 के वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के घरों पर विभाग ने
गुरुवार को बुल्डोजर ही नहीं चलाया बल्कि 12 लोगों को गिरफ्तार
कर लिया। गिरफ्तार लोगों के विरुद्ध वन अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। इन लोगों
को विभाग ने लगेज वाहन पर भूसे की तरह ठूंसा ही नहीं गया वरन गंभीर सजायाफ्ता
कैदियों की तरह हाथ में हथकड़ी लगाकर वाहन में बांध दिया गया था।
बता दें कि मामूली अपराध के मामले में आरोपी को हथकड़ी लगाने
पर कड़ा ऐतराज किया गया है। बावजूद इसके हथकड़ी का उपयोग मामूली अपराध करने वाले पर किए
जाने से महकमा बाज नहीं आ रहा है। वन विभाग ने तो सारी हदें पार कर दी है।
अतिक्रमण कारियों को न्यायालय में पेशी के दौरान जिस तरह से विभाग के वाहन से ले
जाया गया, जिसने भी देखा
दांतों तले अंगुलियां दबा लिया और विभाग के कारस्तानी को कोसने से बाज नहीं आया।
इस संबंध में वन क्षेत्राधिकारी (जयमोहनी) श्रवण कुमार
अहिरवार इस मामले में कन्नी काट लेते हैं। कुरेदने पर कहा कि मामले की जांच की
जाएगी।
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