Thursday, September 16, 2010

मानसिक क्रूरता

अलग रह रही पत्नी अपने पति की प्रेमिका के खिलाफ मानसिक क्रूरता का मामला दायर नहीं कर सकती। लेकिन पति उसके परिजनों को इस जुर्म के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अल्तमश कबीर तथा एके पटनायक ने आईपीसी की धारा 498- से संबंधित एक मामले में यह फैसला दिया। इस मामले में आशा रानी ने सुनीता झा के खिलाफ आरोप लगाया था कि वह उसके पति मुकुंद के साथ शादी के बगैर रहती है। सुनीता उसे मानसिक कष्ट देती है। ये दोनों ऐसे साथ रहते हैं मानो शादीशुदा हों।सेशन कोर्ट ने सुनीता की फौजदारी मामला खारिज करने की अपील ठुकरा दी। फिर झारखंड हाईकोर्ट ने भी इस फैसले में दखल से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट का मानना था कि सुनीता शिकायतकर्ता रानी के पति के साथ रहती थी। अत: उसे मुकुंद के परिवार का सदस्य माना जाए। इसके खिलाफ सुनीता ने शीर्ष कोर्ट में अपील की थी। धारा 498- के प्रावधानों का खुलासा करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इसके तहत पति या उसके रिश्तेदारों को महिला के प्रति क्रूरता बरतने का दोषी ठहराया जा सकता है। अगर कोई महिला पुरुष से रक्त संबंध या शादी के मार्फत जुड़ी हुई नहीं है तो उसके खिलाफ यह धारा नहीं लगाई जा सकती है!

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