Thursday, August 29, 2013

Pension


जून 2012 में रिटायर एक मिडिल स्कूल के टीचर श्री रामलखन बिश्वकर्मा  वाराणसी डीएम के आवास के समक्ष पार्क में 14/15 अगस्त 2013 की रात में आत्मह्त्या कर लिये.उन्हें अपनी पेशन नहीं मिल पा रही थी.हर संभावित सहायता हेतु वे दौड़ते-दौड़ते थक हार चुके थे.चोलापुर मिडिल स्कूल के  हेडमास्टर पद से रिटायर हुए थे.उनके आवास से DM,IG,SSP के साथ जिला स्तर के अन्य अधिकारियों के नाम स्पीड पोस्ट की रसीद मिली.

क़ानून व माननीय न्यायालयों के  अनुसार पेंशन पाने का अधिकार किसी की  संपत्ति है.और किसी को उसके संपत्ति से बंचित नहीं किया जा सकता. {वित्तीय हस्त पुस्तिका खंड 2 भाग 2 से 4 के मूल नियम 56 के उपनियम (ड़) }.यहाँ तक कि अधिवर्षता, स्वेच्छिक सेवा निबृत्ति , अनिवार्य अशक्तता एवं प्रतिकर पेंशन कतिपय शर्तों के अधीन अस्थायी सरकारी सेवकों को भी अनुमन्य है. हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक अपने निर्णयों में  है कहा है कि किसी भी कर्मचारी की पेंशन व ग्रेच्युटी केवल आर्थिक गबन पर रोकी जा सकती है. बिभागीय कार्यवाही,दीवानी या फौजदारी वाद न्यायालय में लंबित रहने पर किसी की  पेंशन व ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं रोका जा सकता. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने डी० एस० नकारा बनाम भारत सरकार में पेंशन के बारे में 3 सिद्धांत प्रतिपादित किया है-

            1-Pension creates vested rights

            2-Pension is a payment for the past service rendered

            3-It is a social welfare measure rendering socio-economic justice to those who in the heyday of their life have toiled ceaselessly for the employer on an assurance that in their old age they would not be left in the lurch.

पेंशन के सम्बन्ध में नियम सिविल सर्विस रेगुलेशंस में हैं.उत्तर प्रदेश  लिबरलाइज्ड पेंशन रूल्स 1961 उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट बेनीफिट्स रूल्स 1961 ,नयी पारिवारिक पेंशन योजना 1965 इत्यादि लाभकारी नियम बनाकर इन सुबिधाओं को और सरल,उदार,लाभप्रद और जन कल्याणकारी बनाया गया है. शासनादेश संख्या एस-3-2085/दस-907-76 दिनांक 13दिसंबर 1977 द्वारा पेंशन प्रपत्रों की तैयारी हेतु 24 मासीय समय सारिणी निश्चित है,और उत्तर प्रदेश पेंशन मामलों का (प्रस्तुतीकरण ,निस्तारण और बिलम्ब का परिमार्जन ) नियमावली 1994 02 नवम्बर 1994 से लागू है. इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने सेवकों के लिए उत्तर प्रदेश अनुकम्पा निधि स्थापित किया है . ऐसे सरकारी सेवक जिन्होंने न्यूनतम एक वर्ष सरकारी सेवा कर ली हो की मृत्यु हो जाने पर उसके परिवार द्वारा 5 वर्ष के अन्दर अनुकम्पा निधि से आर्थिक सहायता दी जाती है.

 छ: प्रकार की पेंशन होती है:--

Ø  प्रतिकर पेंशन --- सी एस आर  प्रस्तर 426 व G.O सा-3 -1713/दस-87-933/89 दिनांक 28 जुलाई 1989 के संलग्नक -1-सी(ii) दिशा निर्देश बिंदु 11(2)

Ø  अशक्तता पेंशन---- सी एस आर  प्रस्तर 441 से 457 व G.O सा-3 -1152/दस-915/89   दिनांक 01 जुलाई 1989

Ø  अधिवर्षता पेंशन--- सी एस आर  प्रस्तर 458

Ø  सेवा निबृत्ति पेंशन ---

·         अनिवार्य सेवा निबृत्ति पेंशन- मूल नियम 56ई व G.O सा-3 -1380/दस-2001- 301(40/2001 दिनांक 31 जुलाई 2001

·         स्वेच्छिक सेवा निबृत्ति पेंशन--- 20 बर्ष की सेवा पर

Ø  असाधारण पेंशन—यह पेंशन जोखिम भरे पद पर कार्य करते हुए मारे जाने पर या अशक्तता इस स्तर की हो पद पर कार्य न करने लायक हो तो शासन द्वारा पेंशन प्रदत्तकी जाती  है.

Ø  एक्सग्रेसिया पेंशन – सेवा के दौरान अंधे व बिकलांग जिन्हें नियमों के अंतर्गत कोई पेंशन देय न हों. G.O सा-2 -574/दस-942/75 दिनांक 19 – 06 – 76 से यह योजना लागू  है.

    पेंशन स्वीकृत न होने की दशा में कार्यालयाध्यक्ष /बिभागाध्यक्ष पूरी सेवा पेंशन तथा मृत्यु की दशा में 90 % आरिवारिक पेंशन अनंतिम रूप से स्वीकृत कर देगें . और ग्रेच्युटी एक माह के वेतन या रू० 3000 ( जो भी कम हो) रोककर स्वीकृत की जायेगी जो अंतिम भुगतान में से समायोजित की जायेगी. बिभागीय व न्यायिक कार्यवाही की दशा में भी अनंतिम पेंशन देय है,लेकिन ग्रेच्युटी रूकी रहेगी,लेकिन माननीय न्यायालय ने इसे केवल आर्थिक गबन तक सीमित कर दिया है.

 पेंशन हेतु सेवा निबृत्ति के 6 माह पूर्व से जीपीएफ इत्यादि की कटौती बंद कर कर्मचारी के समस्त सेवा संबंधी प्रकरण व सर्विस बुक कार्यालयाध्यक्ष /बिभागाध्यक्ष द्वारा पूर्ण करने/कराने  का प्राविधान है. सेवा के अंतिम दिन सभी सेवा निबृत्तिक लाभ दे देने का नियम है. जीपीएफ तो स्वयं कर्मचारी की होती है,जिसके 90% भुगतान में कोई बाधा उत्पन्न करना घोर पाप की श्रेणी में है. अगर कर्मचारी सेवा के अंतिम महीनों में वेतन लेते हुए सकुशल रिटायर हुआ है तो अनंतिम पेंशन देने में भी कोई बैधानिक कठिनाई नहीं है. कार्यालयाध्यक्ष /बिभागाध्यक्ष इसमें लेकिन परन्तु करता है तो केवल अपने निहित स्वार्थ के कारण ऐसा कृत्य कर रहा है.

 सिविल सेवा नियमावली    उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट बेनीफिट्स रूल्स 1961 और अन्य निर्गत शासनादेश के अनुसार रिटायर्ड सेवक को निम्न लिखित सुबिधायें एवं लाभ देय होते हैं:-

v  पेंशन

v  पेंशन का नकदीकरण

v  उपादान

v  उपादान का भुगतान बिलम्ब से होने की दशा में ब्याज

v  अर्जित अवकाश का नकदीकरण

v  जीपीएफ  एवं सम्बध बीमा योजना का लाभ

v  सामूहिक बीमा योजना में जमा धनराशि ब्याज सहित.

v  वांछित निवास स्थान तक का यात्रा भत्ता

v  चिकित्सीय सुबिधा

   मीडिया के अनुसार  तंत्र उनकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार है.कितनी दुखदायी जिन्दगी किसी रिटायर्ड बरिष्ठ नागरिक की बना दी जाती है.दिन-प्रति दिन थोड़ा-थोड़ा मरते मरते अंत में अपनी जीवन लीला समाप्त करने को मजबूर हो जाते हैं.  एक रिटायर्ड सीनियर सिटीजन के साथ ऐसा बर्ताव नहीं होना चाहिए था. अब तो पेंशन में कोई दिक्कत न हो ,इसके लिए महालेखाकार से यह अधिकार/कर्तब्य छीनकर उत्तर-प्रदेश  सरकार ने पेशन निदेशालय को दे दिया है. पेंशन निदेशालय ने इसको और सरलीकरण करते हुए बिकेंद्रीकृत कर मंडल स्तर पर मंडलीय निदेशक नियुक्त कर दिया है. मंडल स्तर पर पेंशन अदालत का आयोजन होता है,जिस अदालत में न्याय देने  हेतु पेशन निदेशालय के अफसर बैठते हैं. अनंतिम पेंशन का प्राविधान है,और सब कुछ उसके बैंकखाते में स्वयमेव चला जाता है.यह नियम, शासनादेश इत्यादि अफसरों की मनमानी ब्याख्या के अधीन हैं.जिस भी मामले में उनका निहित स्वार्थ पूरा नहीं होगा तो सभी नियम,क़ानून धरे रह जायेगें . यह तो हकीकत है कि रिटायर्ड सीनियर सिटीजन न सरकार,न अफसर,न समाज,न देश के किसी कार्य का माना जाता है, न कोई शारीरिक परिश्रम और न अफसरों के मनमाफिक आचरण कर पाते हैं.पेंशन ही एकमात्र उनकी जीविका का साधन है.उसमें भी इतनी कागज़,फॉर्म इत्यादि  की औपचारिकता करनी पड़ती है,उसके बाद अफसरों की शासनादेशों की मनमानी ब्याख्या जिसको कुछ रिटायर्ड लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. अब एक सीनियर सिटीजन  को आत्महत्या करनी पड़े,तो आत्मचिंतन के लिए मजबूर होने के सिवा कुछ नहीं बचा है.किसी भी संवेदनशील मानव को इस पर आश्चर्य होगा.एक मानव का अपने बुजुर्गों के प्रति यह घृणा-भाव देश को कहाँ ले जाएगा.किस तरह अफसर अपने मातहतो और कमजोरों को सताते हैं.सकलडीहा तहसील (चंदौली) में प्राथमिक विद्यालय कूरा में सहायक अध्यापक पन्ना सिह यादव का वर्ष 2010 में नौगढ़ ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय भुसोवी में प्रधानाचार्य के पद पर पदोन्नति देते हुए तबादला हुआ. नौगढ़ ब्लाक में  प्राथमिक विद्यालय भुसोवी नाम का कोई विद्यालय ही नहीं है. पन्ना सिह यादव बेसिक शिक्षा अधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक गुहार लगा चुके हैं, न बिभाग शर्मिन्दा है न प्रशासन .उल्टे बिभाग के लोग यह प्रचारित करते हैं कि यह अफसर की कलम की ताकत है. पन्ना सिह यादव यह कहते हैं कि पूरी ईमानदारी व निष्ठा से सेवा का परिणाम मुझे यह दिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने तो इससे मिलती जुलती स्थिति में कह दिया,कि ऐसे अफसरों से भगवान भी कार्य नहीं करा सकते? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एआरटीओ इलाहाबाद को एक लिपिक की पदोन्नति आवेदन पत्र का समय से निस्तारण न करने पर 50 हजार का जुर्माना लगाया तथा लिपिक को पदोन्नत करने का आदेश दिया.  उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी अधिनियम है,जिसमें बर्तमान 17 लोक सेवाओं के के स्थान पर 150 लोक सेवाओं को शामिल करने का आदेश दिनांक 21अगस्त 13 को दिया गया जिसमें पेंशन स्वीकृति ,जीपीएफ स्वीकृति,चिकित्सा एवं उपार्जित अवकाश स्वीकृति,तथा सुनिश्चित कैरियर प्रोन्नयन एवं मृतक आश्रित नियुक्ति ,मुख्यमंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजनान्तर्गत बैको से सहायता प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्रों का निस्तारण,ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रोंके ट्रांसफार्मर जलने पर बदले जाने,नए घरेलू एवं ओद्योगिक विद्युत कनेक्शन एवं खराब मीटर को बदले जाने तथा बिद्युत दुर्घटना पर भुगतान किये जाने,आवासीय एवं गैर आवासीय भवन मानचित्र स्वीकृत किये जाने ,नजूल भूमि को छोड़कर भूखंड/भवन को फ्री होल्ड किये जाने तथा संपत्तियों के निबंधन ,पशुपालन बिभाग की स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा संचालित गोशालाओं के पंजीकरण आदि प्रकरणों पर निर्णय लिए जाने जैसे  जैसे सामान्य मामलों को इस अधिनियम से आच्छादित किया जाएगा.निर्धारित अवधि में निर्णय न लेने पर सम्बंधित अधिकारियों को जनहित गारंटी अधिनियम नियमों के तहत दण्डित कर 5000 रूपये तक आर्थिक दंड भरना होगा . वैसे कार्यालय कार्य प्रणाली  में इसकी काट अफसरों ने आपत्ति के रूप में खोज लिया है.एक आपत्ति लगाकर लगभग 6 महीने इस प्रकार कम से कम 3 आपत्ति से 18 माह तक किसी को इस अधिनियम की गारंटी से बंचित कर रहे हैं.

 ऐसी घटना पूर्व में भी वाराणसी में हो चुकी है, जीविका का साधन सीधे ब्यक्ति की जिन्दगी को प्रभावित करते हैं. ०1 अगस्त 2007 को 7 बिकलांग लोग गुरुबाग जो वाराणसी में लक्शा थाने  से महज 300 मीटर दूर होगा ,जहर खाकर सड़क पर मर गए .2 घंटे तक सड़क पर तड़पते रहे ,प्रशासन व पुलिस का कथन था  कि नाटक कर रहे हैं.मेडिकल सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है. जब एक,दो कमजोर स्वास्थ्य वालों का  शरीर मर कर शिथिल पड गया ,तो सबको अस्पताल ले जाया गया.5 ने दम तोड़ दिया. बिकलांगों की गुमटी जिसके सहारे उनका गुजर वसर चल रहा था. उठाकर जब्त कर ली गयी थी. उनकी जीविका के लिए कोई बैकल्पिक ब्यवस्था/जगह नहीं दी गयी.

 क्या सचमुच ऐसी स्थिति है? अनिल कुमार महाजन 1977 बैचके आईएएस हैं. 1993 में उनके बिरुद्ध जांच शुरू हुई ,जब वे बिहार में पदस्थ थे. 11 साल जांच चलती रही जिसमें  वे दो बार निलंबित किये गए. स्वेच्छिक सेवानिबृत्ति  का उनका प्रार्थना पत्र यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि सेवा काल 20 साल नहीं हुआ है. अंत में 15 अक्टूबर 2007 को उनको पागल घोषित करते हुए  जबरदस्ती रिटायरमेंट दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पूर्ण वेतन देते हुए सभी लाभ देने का आदेश 18 अगस्त 13 को दिया. जस्टिस जीएस सिंघवी.और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि 1977 में नौकरी के समय वे पागल नहीं थे . नौकरी के दौरान पागल इत्यादि अयोग्यता में कर्मचारी को उसके पद के अनुरूप कार्य देकर नौकरी में रखना चाहिए .यदि उस समय कोई पद न खाली हो तो ऐसा कोई पद निर्मित कर उस समय तक कार्य पर रखना चाहिए ,जब तक कोई उपयुक्त पद खाली न हो जाय. The Persons with disabilities (Equal Opportunities,Protection of Rights and Full Participation ) Act 1995 की धारा 47 की ब्याख्या करते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 30 साल बाद पागल घोषित कर निकालना गलत है. हो सकता है कि बिहार सरकार और याची के बीच कुछ समस्या रही हो लेकिन किसी को पागल घोषित कर निकाल देना बिधि सम्मत नहीं है. हाई कोर्ट ने याची के वकील को रिट वापस लेने की अनुमति देते समय  केवल जांच अधिकारी की जांच आख्या को देखा है,और सभी तथ्यों को नहीं देखा  है.

 

 तंत्र क्यों और कैसे कार्य करता है? कुछ माह पूर्व प्रधान मंत्री कार्यालय के एक बरिष्ठ नौकरशाह ने अपने आवास आबंटन हेतु प्रयत्न किया.आवास आबंटित भी हो गया लेकिन 8 माह से उसकी मरम्मत ही हो रही थी. थकहार कर बरिष्ठ नौकरशाह ने मंत्री जी को पकड़ा, उन्होंने बिभाग के अफसरों को सख्त हिदायत दिया कि आवास 1 घंटे के अन्दर तैयार हो जाना चाहिए .फ़्लैट 1 घंटे में तैयार कर बरिष्ठ नौकरशाह को दे दिया गया.( Hindustan times August 19, 2013 INSIDE GOVERNMENT)

 ऐसी हालत में क्या मिडिल स्कूल के अध्यापक को उक्त दोनों सुबिधा लेनी चाहिए थी? कोशिश करने पर भी मंत्री तक आम आदमी नहीं पहुँच पाता ,और सरकार के बिरुद्ध अदालत में मुकदमा लड़ना किसी आईएएस के बश की ही बात है.  रिटायर्ड हाई-कोर्ट के जज आर.ए.मेहता 25 अगस्त 2011 को  गुजरात के लोकायुक्त नियुक्त हुए. इनको नियुक्ति और ज्वाईन कराने की जगह नियुक्ति को अनियमित बताते हुए याचिका राज्य प्रशासन द्वारा दाखिल कर दी गयी. उनको ज्वाईन नहीं कराया गया. यह तथ्य जग-जाहिर है कि दिसंबर 2003 से लोकायुक्त गुजरात में नहीं हैं. याचिका दर याचिका खारिज होने पर रिब्यू याचिका पेश की गयी. रिब्यू खारिज होने पर पुन:निरीक्षण (Curative petition) पेश की गयी,जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्वीकार की गयी. मात्र 45 करोड़ जनता का रूपया बर्बाद हुआ और 2 साल का समय लगा,जब कि रिटायर्ड हाई-कोर्ट के जज से सम्बंधित मामला था.सुप्रीम कोर्ट ने इनकी नियुक्ति को बैध घोषित किया. 45 करोड़ तो कोई ईमानदार कर्मचारी पूरे सेवा काल में नहीं प्राप्त कर सकता.

  सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि वर्तमान में मुकदमा लड़ना वेहद महँगा हो गया है.न्यायमूर्ति बीएस चौहान एवं एसए बोब्दे की पीठ ने कहा है  कि न्यायिक प्रक्रिया इस कदर धीमी है कि आम लोगों को यह धारणा हो गयी है कि उनकी जिन्दगी में शायद ही उन्हें इन्साफ मिले.कोई ज्योतिषाचार्य भी यह भविष्यबाणी नहीं कर सकता कि आम आदमी को कब तक न्याय मिल पायेगा. न्यायिक पेशे को कभी बेहद पबित्र माना जाता था,लेकिन बर्तमान में इसका ब्यावासायीकरण हो गया है ,इससे इन्साफ की लड़ाई गरीबों के सामर्थ्य के बाहर हो गयी है.न्याय प्रदान करने की राह में जज के साथ वकील भी बराबर के भागीदार हैं,लिहाजा अधिवक्ताओं का यह कर्तब्य है कि वे मुश्किल में में फंसे हुए शख्श को राहत दिलाएं न कि उनका शोषण करें. कोर्ट ने ऐसे वकीलों पर नाराजगी जाहिर की जो अपने मुवक्किल को केस लड़ने के लिए फंसाते हैं,और बाद में केस को किसी अन्य वकील के हवाले कर देते हैं.  ने यह टिप्पणी एक ऐसे वकील को फटकार लगाते हुए की जिसने मुकदमा तो दायर किया लेकिन जिरह करने के लिए केस के दौरान कभी उपस्थित नहीं हुआ.

 पेंशन अदालत,तहसील दिवस,जिला स्तर,मंडल स्तर,शासन स्तर पर प्रत्येक बैठक में पेंशन देने व लंबित मामलों की समीक्षा होती है,इसके बाद भी किसी को अपने पेंशन हेतु मरना पड़े तो इन पेंशन अदालत, तहसील दिवस और अनेक स्तरीय मीटिंग का कोई ओचित्य नहीं है. नौकर शाह की अपनी ब्याख्या और कार्य शैली है. उनको तो कभी रिटायर ही नहीं होना है, और रिटायर के पूर्व ही कारपोरेट लीडर और देश के लीडरों को इतना फ़ायदा दे चुके हैं कि इनके लिए पद व नौकरी आरक्षित रहती है,जो रिटायर होते ही इनको प्राप्त है. पेंशन से बहुत ज्यादा आर्थिक लाभ इनकी मुट्ठी में रहता है,फिर पेंशन के रूल्स व रेगुलेशंस का अनुपालन करने/कराने की क्या आवश्यकता है.एक सचिव महोदय तो कह ही चुके हैं कि जो जन्म लेता है,उसे मरना ही है.  भूतपूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी श्री के० एम० चंद्रशेखर का इंटरब्यू दिनांक 20 अगस्त 13 के Hindustan times –INSIDE GOVERNMENT Page पर छापा है, जिसके अनुसार “ ---there are serious systemic flaws in our administrative mechanism.We operate under a set of archaic rules using procedures no longer relevant .Our systems are still based on colonial concepts of concentration of power and distrust”

“When I entered the civil service in 1970 ,the range and ambit of government services was much smaller ,Besides,other components of national governance,namely ,the political excutive and the judiciary have grown in their reach and authority ,thus shrinking the space available for the administrative excutive.The regulatory system,including audit, has also grown much larger .For these reasons ,I think decisions making ,like other aspects of governance ,has been affected”

सचमुच यह सही बिश्लेषण है.आज मंत्री,सांसद,बिधायक,पंचायत अध्यक्ष ,महापौर,इत्यादि जिला स्तरीय  मीटिंग में कलक्टर और सीडीओ को एक किनारे बैठाकर महत्वहीन कर दिए हैं. अनेक जन कल्याण कारी अधिनियम,नियम,शासनादेश और योजनाओं पर कुण्डली मार कर बैठना,जिससे जन सामान्य इससे बंचित रहे और राजनेता के आगे पीछे दुम हिलाना ही नौकरशाह की दुर्गति का कारण है.नौकरशाह की ब्याख्या ऐसे शिखंडी की तरह है,जिसके सामने पराक्रमी भी अस्त्र-शस्त्र डालकर मृत्यु को वरण कर लेते हैं.

Thursday, April 18, 2013

जमीनी तमाशा 4


जमीन के सम्बन्ध में इतने नियम,अधिनियम,शासनादेश,सर्कुलर और बिनियम हैं कि जमीन इसके मालिक की न होकर उक्त कानूनों के बीच फुटबाल हो गयी है. इन्हीं तमाशों को देखने की कोशिश की गयी है.
वनाधिकार कानून का उल्लंघन नहीं:-
नई दिल्ली। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए मीडिया में आई इन खबरों का खडन किया कि पर्यावरण और वन मंत्रालय वनाधिकार कानून 2006 का उल्लंघन कर रहा है।
रमेश ने अपने वक्तव्य में कहा, 'हाल ही में अखबारों में इस तरह की खबरें आई हैं कि पर्यावरण और वन मंत्रालय अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी [वनाधिकार की पहचान] कानून का बाघ संरक्षित क्षेत्रों तथा अन्य वन्यजीव अभयारण्यों में उल्लंघन कर रहा है।'
उन्होंने कहा, 'इस तरह की खबरें गलत और गुमराह कर देने वाली है।''
रमेश ने कहा कि बाघ संरक्षित क्षेत्रों में दो हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा मुख्य या महत्वपूर्ण बाघ पर्यावास का होता है जिसे राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य का दर्जा प्राप्त होता है। दूसरा हिस्सा बफर क्षेत्र कहलाता है। मुख्य या अहम बाघ पर्यावास क्षेत्र मुख्य वन्यजीव पर्यावास से अलग होता है। उन्होंने कहा कि कानून के अमल के तहत पुनर्वास करने के लिए राज्य सरकारों को अनुसूचित जनजाति और अन्य वनवासियों की पहले यह रजामंदी लेनी होती है कि उनके समक्ष वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व का कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं है।
साथ ही, वनवासियों के पुनर्वास के लिए ग्राम सभा और प्रभावित लोगों की रजामंदी लेना जरूरी है।
रमेश के अनुसार, दिशा निर्देशों में यह सुनिश्चित कराया गया है कि मुख्य वन्यजीव पर्यावास क्षेत्रों की घोषणा प्रभावित लोगों कीच्स्वेच्छिक रजामंदी के बाद ही की जाए।
         'गो' और 'नो-गो'
पर्यावरण मंत्रालय ने उड़ीसा के बेडाबहल में 4,000 मेगावाट की अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट [यूएमपीपी] को मंजूरी दे दी है। यह परियोजना पर्यावरण मंत्रालय की 'नो-गो' [जहां खनन की अनुमति नहीं है] परिभाषा के चक्कर में पिछले दो वर्षो से लटकी हुई थी। हाल के दिनों में पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से स्वीकृति हासिल करने वाली यह देश की दूसरी बड़ी औद्योगिक परियोजना है। पर्यावरण व वन मंत्रालय ने कुछ ही दिन पहले छह वर्षो से लंबित पोस्को स्टील परियोजना को मंजूरी दी है।
बिजली मंत्रालय ने जिस कोयला ब्लाक से कोयले की आपूर्ति इस परियोजना को देने का प्रस्ताव किया था, वह पर्यावरण मंत्रालय के 'नो-गो' एरिया के तहत आ गया है। साथ ही जहां यह परियोजना स्थापित होनी है, वहां दो अन्य पावर प्लांट और लगाए जाने हैं। पर्यावरण मंत्रालय कहता रहा है कि वहां सिर्फ दो ही परियोजनाएं लग सकती हैं। वैसे पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के बाद भी इस परियोजना को कोयला आपूर्ति को लेकर अंतिम फैसला बिजली मंत्रालय को ही करना होगा।
  • अगस्त २०११  में ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी से भारतीय इकाई केयर्न इंडिया को वेदांत समूह ने खरीदने का सौदा किया था, लेकिन भारत सरकार से अभी तक इसकी मंजूरी नहीं मिली है। ओएनजीसी की केयर्न इंडिया के राजस्थान स्थित बाड़मेर तेल फील्ड में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। दोनों के बीच हुए समझौते में तेल की रॉयल्टी का भुगतान ओएनजीसी को करना था, लेकिन अब यह सरकारी कंपनी चाहती है कि इस अदायगी में केयर्न भी साझेदारी करे। लेकिन केयर्न का कहना है कि ऐसा होने से इस समझौते के पूरे समीकरण बदल जाएंगे।
    केयर्न को बाड़मेर स्थित तेल फील्ड उस वक्त मिला था जब सरकार नई अन्वेषण लाइसेंस नीति [नेल्प] के जरिये तेल फील्ड की नीलामी नहीं करती थी। नेल्प के जरिये तेल फील्ड का आवंटन शुरू होने के बाद सरकार ने रॉयल्टी भुगतान के नियम बदल दिए। इससे पहले खुद पेट्रोलियम सचिव ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा था कि रॉयल्टी भुगतान की इस शर्त को मंजूर कर लिया जाए। अब ओएनजीसी के दबाव में तेल मंत्रालय इस नियम को बदल कर नेल्प की शर्तो के मुताबिक करना चाहता है


फरीदाबाद एयरफोर्स के तिलपत शूटिंग रेंज की जमीन पर भू-माफियाओं ने कब्जा करके उन्हें औने-पौने दामों पर बेच दिया है। उस पर आवासीय प्लॉट काट लिए हैं। इतना ही नहीं वायुसेना की जमीन से करीब सवा करोड़ रुपये की मिट्टी भी चोरी करके बाजार में बेची गई है। यह करतूत तिलपत, अगवानपुर, बसंतपुर के कुछ माफियाओं की देखरेख में है।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------- भोपाल मध्यप्रदेश की शीर्ष सहकारी बैंक (अपेक्स बैंक) ने किसानों से इजाजत लिए बगैर उनकी 2 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा कीमत वाली जमीन को विदेश में गिरवी रख दिया है। वित्त विभाग के प्रमुख सचिव जी.पी. सिंघल ने कर्ज के मामले की पुष्टि करते हुए कहा कि मामले की जांच की जा रही है। क्या बैंक को सीधे विदेशी संस्था से कर्ज लेने का अधिकार है? इस पर सिंघल ने कहा कि इसका जवाब सहकारिता विभाग देगा। सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव मदन मोहन उपाध्याय ने कहा कि मामला उनकी जानकारी में है। सरकार प्रकरण को देख रही है। मुख्य सचिव अवनि वैश्य खुद पूरे मामले पर निगरानी रखे हुए थे। सूत्रों ने बताया सरकार ने विधि विभाग से पूछा है कि अखण्डनीय वचन पत्र को समय से पूर्व निरस्त कैसे किया जा सकता है। सरकार को आशंका है कि इस वचन पत्र का उपयोग कर किसानों की जमीनें हड़पी जा सकती हैं। जमीन एक ऐसी संस्था को गिरवी रखी गई है, जो एकदम नई है और बैंकिंग क्षेत्र के लोग भी इसके बारे में नहीं जानते। स्पीड स्टार एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड नामक इस संस्था से अपेक्स बैंक ने 6500 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का अनुबंध किया है। अपेक्स बैंक के अध्यक्ष भंवर सिंह शेखावत ने कहा कि हमने किसानों की जमीन गिरवी नहीं रखी है। कर्ज के दस्तावेजों को भी उन्होंने झुठला दिया।
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------- उत्तराखंड औद्योगिक नवनिर्माण बोर्ड(बीआईएफआर) की सिफारिश पर राज्य की निशंक सरकार द्वारा दस अक्टूबर 2009 को ऋषिकेश स्थित स्टर्डिया कंपनी को कई रियायतें दीं गई थीं, जिनमें भू उपयोग परिवर्तन की अनुमति देते हुए पंद्रह एकड़ भूमि के व्यवसायिक उपयोग की मंजूरी देना प्रमुख था। सरकार के इस फैसले को उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा ने जनहित याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी। याची का आरोप था कि सरकार ने 400 करोड़ की भूमि के व्यवसायिक उपयोग की अनुमति देने से पहले जनहित के बारे में नहीं सोचा, इससे सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि हुई। याचिकाकर्ता ने इस मामले में सीबीआइ जांच की भी मांग की थी। बीते मंगलवार को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति बारिन घोष व न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने याचिका पर फैसला सुनाया। खंडपीठ ने सरकार द्वारा स्टर्डिया कंपनी को भूमि बेचने की अनुमति देने, सुविधाएं देने व अन्य रियायतें देने के फैसले को गलत मानते हुए कंपनी को दी गई सुविधाएं व रियायतों संबंधी सभी सरकारी फैसलों को रद कर देहरादून के जिलाधिकारी को उक्त भूमि को सरकारी कब्जे में लेने के आदेश दिए थे।
सबसे ज्यादा बड़ा खेल नजूल भूमि से सम्बंधित है.एक तरफ न्यायालयों में मुकदमें भी चलते रहते हैं,दूसरी तरफ शासनादेश,पट्टा ,पट्टा मन्सूखी बगैरह अफसरों का खेल जारी रहता है. एक बार नीलामी की पुष्टि करने, कब्जा संभलाने और लीजडीड जारी करने के बाद भी कोई न कोई कारण दिखाते हुए मन्सूखी की नोटिस थमा दी जाती है.
सुभाष चौक, खैर, अलीगढ़ , 1959 में यहां नजूल संपत्ति 1785/84 का पट्टा रौती प्रसाद के हक में दिया गया। 1964 में छेदालाल ने उस जमीन पर बनी दुकान किराए पर ली। छेदालाल के मुताबिक वे तब से वहां किराएदार हैं और 1966-67 में मूल पट्टाधारी रौती प्रसाद की मृत्यु के बाद उनके वारिसों ने छेदालाल को बाहर निकालने के लिए मुकदमा डाला। लेकिन वारिस सुप्रीम कोर्ट तक से मुकदमा हार गए। इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने नजूल संपत्ति फ्री होल्ड कराने के समय-समय पर शासनादेश जारी किए। इन आदेशों में पट्टेदार और जिनके पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है दोनों ही तरह के मामलों में नजूल संपत्ति फ्री होल्ड कराने के नियम जारी किए गए। याचिकाकर्ता का कहना है कि जिनके पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है या जिन्होंने पट्टे की शर्तो का उल्लंघन किया है उन्हें नजूल संपत्ति फ्री होल्ड कराने का हक नहीं मिलना चाहिए। उन संपत्तियों में यह हक उस व्यक्ति को मिलना चाहिए जिसके कब्जे में संपत्ति है। जबकि, हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया है कि शासनादेश में पट्टेदार और खत्म हो चुके पट्टे के मामलों में कोई भेद नहीं किया गया है
उत्तर प्रदेश सरकार का 1 दिसंबर, 1998 का शासकीय आदेश( शासनादेश )है जिसमें खत्म हो चुके पंट्टे के पट्टेदार को भी नजूल संपत्ति फ्री होल्ड कराने का हक दिया गया है।
छेदालाल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। छेदालाल के वकील डी.के. गर्ग ने पीठ से कहा कि नियम के मुताबिक तो पट्टा अवधि खत्म होने के बाद पट्टाधारक का संपत्ति पर कोई हक नहीं रह जाता वह भूमि तो वापस सरकार में निहित हो जाएगी।
इसी तरह  का मामला  सत्यनारायन कपूर बनाम स्टेट का था
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------सरकारी जमीन के बंदरबांट और प्रबंधन का एक और नमूना देखिये
हिमाचल सरकार उनके सिद्धबाड़ी स्थित ग्यूतो मठ की जमीन अपने नाम करने जा रही है। धर्मशाला के तहसीलदार नरेश शर्मा मंगलवार को सिद्धबाड़ी जाकर मठ की 82 कनाल यानी 41 बीघा भूमि राज्य सरकार के नाम करेंगे। इस क्रम में सोमवार को राजस्व अधिकारियों ने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को मठ की बेनामी संपत्तियों से संबंधित ब्योरा सौंप दिया है।
कांगड़ा के उपायुक्त आरएस गुप्ता के अनुसार, ''दलाई लामा प्रशासन'' के कब्जे वाली 'बेनामी' जमीनों के दाखिल खारिज की प्रक्रिया 2006 से ही चल रही है। इनमें विशाल ग्यूतो मठ समेत 73 संपत्तियों का हस्तातरण सरकार के नाम किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इन 'बेनामी' संपत्तियों का स्वामित्व सरकार को देकर पहले उनका नियमन किया जाएगा। फिर उन्हें तिब्बती प्रशासन को पट्टे पर दे दिया जाएगा। राज्य सरकार इस पर सहमत हो गई है।
गुप्ता के अनुसार, बेनामी संपत्तियों से संबंधित व्यक्तियों को राजस्व विभाग की ओर से नोटिस भी जारी किए जाएंगे। इस कारण बेनामी संपत्तियों के दायरे में आई भूमि को बेचने व खरीदने वालों पर अब कानून की तलवार लटक गई है। भूमि का क्रय किसने और किसको किया है। वर्तमान में किसका कब्जा है और वहां पर किस तरह का निर्माण हो चुका है। इस संबंध में सारा रिकॉर्ड खंगाला गया है।
हिमाचल प्रदेश में पाए गए बेनामी सौदों में से अब तक पचास में जमीन को हिमाचल प्रदेश सरकार के नाम दर्ज करना एक बड़ा कदम है जिसे काफी पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था। इस मामले पर मुख्यमंत्री और प्रशासन का यह कहना तर्कसंगत और समयोचित ही है कि बेनामी संपति तिब्बती मूल के व्यक्ति की हो या फिर गैर तिब्बती की, कानून सबको एक नजर से देखेगा। ऐसे भी कई मामले हैं जिनमें गैर तिब्बती लोग शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश में धारा-118 की अवहेलना के जो आरोप लगते आए हैं, उनके निराकरण के लिए यह आवश्यक था कि राजस्व विभाग इस स्वाभाविक प्रक्रिया को अंजाम दे। अब सरकार यदि इन जमीनों को पट्टे पर देती है तो उसे अच्छी खासी आय हो सकती है।
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------------------------------------------------------------------------------------------------------------- कमेटी ,कमीशन , जी एम् और फिर वही नौकरशाह
केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले सभी प्राकृतिक संसाधनों का केंद्रीयकृत पारदर्शी डाटाबेस बनाए जाने की जरूरत है। पूर्व सचिव अशोक चावला की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति की मंगलवार को हुई पहली बैठक में कहा गया कि इस डाटाबेस तक सभी सरकारी महकमों की पहुंच होनी चाहिए ताकि मामलों को बिना देरी के निपटाया जा सके
भ्रष्टाचार से निपटने को कमेटी की सलाहइस उच्चस्तरीय कमेटी का गठन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले जीओएम ने किया है। इस जीओएम का गठन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को घटाने के लिए संस्थागत तंत्र के विकसित के लिए सिफारिश देने के लिए किया है। चावला समिति भूमि, जल, खनिज, तेल प्राकृतिक गैस और रेडियो फ्रीक्वेंसी (स्पेक्ट्रम) आदि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, उनका आवंटन तथा इन प्राकृतिक संसाधनों का समान तौर पर आवंटन करने जैसे मुद्दों पर जीओएम को अपनी सिफारिश देगी ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही रहे। समिति सार्वजनिक कल्याण, राजस्व बढ़ाने जैसे मुद्दों पर भी विचार करेगी। इस समिति में चावला के अलावा पर्यावरण और वन, पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस, कोयला, दूर संचार, खनन, जल संसाधन, भूमि प्रबंधन मंत्रालयों के सचिव बतौर सदस्य शामिल किए गए हैं। व्यय विभाग, योजना आयोग समेत कई महकमों के अफसरों के अलावा फिक्की, सीआईआई के प्रतिनिधि भी शामिल किए गए हैं। जीओएम ने इस समिति को प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों की पहचान करने को भी कहा है। समिति ने पहली बैठक में तय किया कि उसका दायरा उन प्राकृतिक संसाधनों तक ही सीमित रहेगा जो मानव निर्मित नहीं हैं। समिति यह भी देखेगी कि मौजूदा कानूनी ढांचे और नियामक तंत्र में बदलाव की जरूरत तो नहीं है। संसाधनों से ज्यादा से ज्यादा लाभ पाने तथा संसाधनों के आवंटन मूल्य और आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के उपाय भी सुझाएगी।
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  बृहस्पतिवार, 10 फरवरी 2011

जनहित के नाम पर जमीन का अधिग्रहण

 चंडीगढ़ हरियाणा सरकार के जनहित के नाम पर अधिग्रहीत जमीन को निजी बिल्डरों को देने और उसके बाद एसईजेड की अधिसूचना जारी करने के फैसले पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कड़े तेवर अपनाए हैं। अस्पताल के लिए जमीन लेकर वहां बिल्डर द्वारा होटल बनाने से खफा कोर्ट ने सरकार द्वारा जमीन देने के आदेश को रद करते हुए वहां बनाए गए होटल अन्य निर्माण गिराने का आदेश दिया है। एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह नियमों को ताक पर रखकर किया गया। अदालत ने इस मामले में सरकार सभी निजी बिल्डरों पर दो लाख का जुर्माना लगाने का भी आदेश दिया है। गुड़गांव जिले के मोहम्दपुरा जरसा निवासी हरिकिशन अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कोर्ट को बताया था कि हरियाणा सरकार ने अधिसूचना जारी कर गुड़गांव जिले के सिलोखरा सुखराली में जनहित के लिए क्रमश: 210 पांच एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था, लेकिन सरकार ने सिलोखरा में 169 एकड़ अपने पास रखकर शेष जमीन निजी कंपनियों के लिए अलग-अलग समय पर रिलीज कर दी। सरकार द्वारा निजी कंपनी के लिए यह जमीन रिलीज करते हुए कहा गया था कि यहां पर एक अस्पताल बनाया जाएगा और इसमें गरीबों का मुफ्त इलाज किया जाएगा, लेकिन इस जगह पर कंपनियों ने अस्पताल की जगह होटल बना दिए। उसके बाद सरकार ने दो अन्य बिल्डरों को और जमीन जारी कर दी। सरकार ने तीस एकड़ जमीन बिल्डरों को देने और वहां एसईजेड की अधिसूचना जारी कर दी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से इस अधिसूचना को रद करने और सरकार द्वारा निजी बिल्डरों को रिलीज की गई जमीन वापस लेने का आदेश जारी करने की मांग की थी। कोर्ट ने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि अगर 6 माह तक इस जगह पर किया गया निर्माण नहीं गिराया जाता है तो हरियाणा सरकार खुद यह निर्माण गिराए इस पर आने वाला खर्च निजी बिल्डरों से वसूल करे।
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संपत्तिशाली लोगों, वर्चस्वशाली उद्यमियों को माटी के मोल या अवैध ढंग से आवंटन आज हर जगह चर्चित मुद्दा है। जनहित के नाम पर जमीन का अधिग्रहण और उसे निजी बिल्डरों या कारपोरेट सम्राटों को सौंपने की अलिखित नीतियां विभिन्न सत्ताधारी सियासी पार्टियों की कार्यप्रणाली का अहम हिस्सा बन गई हैं। इस संदर्भ में गुडगांव जिले के सिलोखेरा एवं सुखबली में जनहित के नाम पर 215 एकड़ जमीन अधिग्रहीत कर बाद में बिल्डरों को बेच दिया गया। इस पर एक जनहित याचिका के संदर्भ में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि छह माह के अंदर इन जमीनों पर निर्माण गिरा दिया जाए और जमीन वापस ले लें। इसे संयोग ही कहेंगे हैं कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले के समय हरियाणा के जींद जिले में जुलाना के दलितों के साथ हुई ज्यादती का प्रसंग भी उभरा। वंचितों एवं गरीबों की जमीनों को हथियाने का यह एक उदाहरण है। मालूम हो कि यहां पर निर्माणाधीन एक बस अड्डा अब एक पुराने खंडहर में तब्दील हो गया है जो कि दलितों की जमीन पर आवंटित हुआ था। इसके बदले उन्हें तो जमीन मिली और ही आज तक उसका मुआवजा मिला। ऐसा नहीं कि विगत ढाई दशक में पीडि़त समुदाय के लोगों ने-धानक एवं हरिजन बिरादरी के छह सौ से अधिक परिवारों ने अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए अलग-अलग नेताओं और अफसरों के दरवाजे नहीं खटखटाए। मगर हर जगह उनके हाथों में आश्वासनों का पुलिंदा ही पकड़ाया गया। कांग्रेस, इनेलो, लोकदल, भाजपा किसी ने भी चकबंदी के समय इन्हें आवंटित साढ़े चार एकड़ जमीन के बदले में उन्हें जमीन दिलाने की अथवा मुआवजा दिलाने की पहल नहीं की। पिछले दिनों राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष के जुलाना दौरे के वक्त भुक्तभोगियों ने इस मामले को सामने रखा। अब यह देखना बाकी है कि इस मामले में कोई कार्रवाई संभव हो पाती है या नहीं। जनांदोलनों या मीडिया की सक्रियता के कारण आम लोगों द्वारा सूचना के अधिकार के इस्तेमाल के चलते महानगरों में भूमि अधिग्रहण में बरती जाने वाली अनियमितताओं के कुछ मामलों का खुलासा तो हो पाया है, लेकिन एक दूसरे तरीके से साझी जमीनों को हस्तगत करने का जो सिलसिला चल रहा है, उस पर बात भी नहीं हो पाती है। कोई व्यापक आंदोलन होना तो दूर की बात है। इस पृष्ठभूमि में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की मार्कण्डेय काटजू एवं ज्ञानसुधा मिश्रा की द्विसदस्यीय पीठ द्वारा दिए गए फैसले ने इस मसले को फिर एक बार केंद्र में ला दिया है। पंजाब के पटियाला जिले के रोहर जागीर ग्राम में तालाब के तौर पर नक्शे में दर्ज जमीन के अनधिकृत अधिग्रहण के खिलाफ दायर याचिका के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसले का दूरगामी महत्व इस बात में भी है कि केवल अदालत ने उपरोक्त मामले में ग्रामसभा की जमीन के कब्जे और उस पर निर्माण को गलत साबित किया, बल्कि इस बहाने अलग-अलग स्तरों पर मौजूद स्वार्थी तत्वों द्वारा इन कब्जों को वैध बनाने की कोशिशों को भी गैर कानूनी बताया है। अदालत ने सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को इस आदेश की प्रति भेज कर उनसे अपने यहां की स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। तीन मई को इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट फिर विचार करेगा। ग्रामीण इलाकों में जिसे ग्रामसभा, ग्राम पंचायत भूमि, शामलात देह (पंजाब आदि क्षेत्रों में) और मंडावेली पोरमबोके जमीन (दक्षिण भारत में) कहा जाता है और जिसका इस्तेमाल विभिन्न सामुदायिक कामों के लिए होता है उसे पैसा, धनबल और राजनीतिक दबदबे के आधार पर कब्जा करने का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। अक्सर ऐसे कब्जों को वैध घोषित करने के लिए पिछले दरवाजे से हथकंडे भी अपनाए जाते रहे हैं। इसका एक तरीका ग्राम समाज के जमीन पर इस अवैध कब्जे के लिए कब्जाधारी से जुर्माना वसूला जाना रहा है। उपरोक्त मामले में भी यही सिलसिला चला, यहां तक कि गांव के तालाब की जमीन पर कब्जा करने वाली पार्टी इतनी वर्चस्वशाली थी कि उसने चुनी हुई ग्राम पंचायत के सदस्यों का भी मुंह बंद कराने में सफलता हासिल की। इसके बाद गांव के कुछ लोगों ने उच्च अदालत में जाना तय किया, आज इसका नतीजा सबके सामने है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ग्राम सभा की जमीन पर गांव के निवासियों के साझे अधिकारों को राज्य के संपत्ति के अधिकार के नाम पर खारिज नहीं किया जा सकता। इसके लिए चिगुरुपति वेंकटा शुभयया बनाम पालाडुगे अंजयया मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उल्लेखनीय है। इसी तरह अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को आवंटन जैसे अपवादात्मक मसले को छोड़ दिया जाए तो किसी भी मामले में ग्राम सभा की जमीन का निजी हाथों में हस्तांतरण उचित नही माना जा सकता। कुछ जुर्माना लेकर रोहर जागीर के कब्जे को वैध कराने के लिए पंजाब के मुख्य सचिव द्वारा लिखे पत्र को भी अदालत ने गैर कानूनी घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं एमआई बिल्डर्स बनाम राधेश्याम साहू 1999 (6) एससीसी 464 केस का हवाला देते हुए उसने यह भी जोड़ा कि ऐसे अवैध कब्जों पर करोड़ों रुपये लगाकर किए गए निर्माण का तरीका भी इन भूखंडों को फिर से सामुदायिक हाथों में हस्तांतरण को जाने से रोक नहीं सकता। मालूम हो कि इस मामले में पार्टी ने भूखंड पर 100 करोड़ की लागत से शॉपिंग मॉल का भी निर्माण किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि मॉल को गिराकर पहले से वहां मौजूद पार्क का निर्माण किया जाए। एक और मामले में तालाब के नाम पर दर्ज जमीन पर अवैध निर्माण के अन्य मुकदमे (हिंच लाल तिवारी बनाम कमला देवी, एआइआर 2001 एससी 3215) का हवाला देते हुए कहा गया कि ऐसी सामुदायिक जमीन को किसी भी सूरत में मकान निर्माण के लिए दिया नहीं जा सकता। ग्राम सभा की जमीनों को किस तरह निजी हाथों में सौंपा जाता है इसके लिए उत्तर प्रदेश में प्रयुक्त एक नायाब तरीके का भी अदालत ने विशेष उल्लेख करना जरूरी समझा। मालूम हो कि जमीन के एकत्रीकरण के लिए बने चकबंदी कानून में चकबंदी अधिकारियों की मिलीभगत से या नकली आदेशों के जरिए ऐसी स्थिति तैयार की जाती है कि लंबे दौर में राजस्व के मूल रिकार्डो के साथ तुलना करना असंभव ही हो जाता है। अपने आदेश के अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वह ग्राम सभा/ग्राम पंचायत/शामिलात देह जैसी साझी जमीनों पर अवैध कब्जे को समाप्त करने के लिए योजना बनाएं और इस बात को सुनिश्चित करें कि ऐसी साझा जमीनें ग्राम सभा को साझे इस्तेमाल के लिए फिर से दोबारा वापस लिया जा सके। अब इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पांच मई, 2011 को इस मामले को लेकर विभिन्न राज्यों के मुख्य सचिवों को रिपोर्ट पेश करनी है। अगर जगह-जगह जनता का दबाव बन सकता है तो राज्य सरकारों को भी इसके बारे में एक पारदर्शी रिपोर्ट पेश करनी होगी वरना वह आंकड़ों का एक ऐसा पुलिंदा अदालत के सामने पेश कर देंगे जो वास्तविकता से मेल नहीं खाते हों। क्या देश की जनपक्षीय ताकतें ऐसा दबाव बनाने के लिए तैयार होंगी।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------- चीनी मिलें बेचने का मामला
उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड और गन्ना विकास संघ की चालू बंद मिलों को बेचने जाने सरकार के मनमाने रवैये पर विधान परिषद में सपा विधायकों ने नियम 105 के तहत जानकारी चाही। आरोप लगाया कि बिजनौर शुगर मिल का निर्धारित 161. 85 करोड़ होने के बाद भी उसे मात्र 101 करोड़ रूपये में बेच दिया गया। लगभग इसी प्रकार के भारी अंतर में पांच मिलें एक समूह विशेष के हवाले कर दी गयी। जबकि इंडियन पोटाश लिमिटेड ने निर्धारित मूल्य से अधिक बोली लगाकर मिलें खरीदी। मिल बिक्री में सात सौ करोड़ का गोलमाल होने का आरोप है।
बेची चालू चीनी मिलें-अमरोहा, बिजनौर, बुलंदशहर, चांदपुर, जरवल रोड, सहारनपुर, रोहाना कलां, सिसवां बाजार, खड्डा, सकौती टांडा। मोहीउद्दीनपुर की बिक्री अधर में (समय पर धनराशि जमा करने से डीड खत्म)
बंद मिलें-बाराबंकी, बरेली, कुशीनगर, महराजगंज, हरदोई, देवरिया, भटनी, रामकोला, शाहगंज




Visakhapatnam Urban Development Authority----- According to the FIR, 4,114 square yards of land in survey nos. 5P and 6P at Peda Waltair near Muvvalavanipalem VUDA layout was earmarked for a community centre.
In 2001, VUDA divided this land into 21 plots which were subsequently auctioned by fixing an upset price of Rs. 3,500 per square yard. Meanwhile, Sri Balaji Park Residents Welfare Association challenged the auction and the allotment of plots in the High Court which declared the decision of VUDA illegal. The High Court ordered that the successful bidders may be either provided with alternative plots or the amounts collected from them be refunded with simple interest.
VUDA moved the Supreme Court challenging the High Court’s verdict.
But the apex court upheld the judgement of the High Court in 2009.
The government officials allegedly created a representation in the name of Sri Balaji Park Welfare Residents Association stating that 1,000 of the 4,114 square yards, of land be given to the library building and the remaining be allotted to persons deprived of plots due to the High Court verdict.

PLAN APPROVED

Mr. Vishnu, who became Greater Visakhapantam Municipal Corporation Commissioner in 2011, approved plans for construction of apartment buildings in the plot nos. 1, 2, 3, 5 and 6. The allotment of plots at the rate of Rs. 3,500 per square yard had caused the VUDA an estimated loss of Rs. 5.23 crore, the FIR said.

The FIR stated that instead of complying with the Supreme Court direction, the then VUDA Vice-Chairman V.N. Vishnu, Estate Officer A. Jagadeesh and three other VUDA employees hatched a criminal conspiracy with private persons to misappropriate the government land.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- कच्छ। गुजरात की एक अदालत ने मंगलवार को निलंबित आइएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को चार दिन के लिए राज्य सीआइडी की हिरासत में भेज दिया। शर्मा पर नियमों का उल्लंघन कर निजी फर्म को सरकारी जमीन बेचने का आरोप है।
स्थानीय अदालत द्वारा शर्मा की अग्रिम जमानत अर्जी नामंजूर किए जाने के बाद उन्हें सोमवार रात को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। शर्मा ने वर्ष 2003 से 2006 के दौरान कच्छ का जिलाधिकारी रहते हुए कथित रूप से अंजर तालुका के वर्शामेदी गांव की सरकारी जमीन बाजार मूल्य से आधी कीमत पर वेल्सपम कंपनी को बेच दी थी।
एफआइआर में कहा गया है कि शर्मा ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कई आदेश दिए और 80 हजार वर्गफीट जमीन वेल्सपम को महज 12 लाख रुपये में बेच दी।
अहमदाबाद भूकंप के बाद गुजरात के कच्छ में जमीन घोटाले तथा राज्य सरकार के साथ विश्वासघात के मामले में निलंबित पूर्व आइएएस प्रदीप शर्मा ने अपनी गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जिस उद्योग समूह को जमीन देने के आरोप में शर्मा की गिरफ्तारी की गई है, उसी मामले में उन्होंने मुख्यमंत्री को भी आरोपी बनाने की माग करते हुए राजकोट सीआइडी को एक पत्र लिखा है। इससे पहले उन्होंने मामले की जाच सीबीआई को सौंपने की भी माग की थी।
शर्मा ने सीआइडी को लिखे पत्र में कहा है कि राज्य सरकार के इशारे पर ही वेलस्पन को यह जमीन दी गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि वेलस्पन ने मुख्यमंत्री के निर्देश के मुताबिक 25 लाख 50 लाख रुपए के दो चेक एक ट्रस्ट के नाम से दिए थे। पत्र में कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने सिंगापुर जाते समय वेलस्पन कंपनी के मालिक बी के गोयनका को कच्छ में उद्योग स्थापित करने के लिए आमंत्रण दिया था। इसके बाद वर्ष 2005 के वाइब्रेंट सम्मेलन से पहले कंपनी को जमीन आवंटित करने के लिए उनपर तथा राजस्व विभाग पर दबाव भी डाला था। मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक सेवा में होने के बावजूद निजी खर्च के लिए कंपनी से धन लिया था। उनके निर्देश पर ही वेलस्पन की ओर से शरदोत्सव के लिए जिला कलेक्टर कार्यालय में 35 लाख रुपए का चेक दिया गया था।
शर्मा दो बार गिरफ्तारी हो चुके हैं। अभी हाल में उन्हें निजी लाभ उठाकर वेलस्पन नामक कंपनी को 48 एकड़ जमीन आवंटित करने के आरोप में सीआईडी की राजकोट इकाई ने दिल्ली में गिरफ्तार किया था। इससे पहले उन्हें व्यापारियों को दुकानें आवंटित करने में अनियमितता के चलते बीते साल गिरफ्तार किया गया था। 2001 में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान वह कच्छ-भुज में जिलाधिकारी के पद पर तैनात थे।
शर्मा ने सीआईडी को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री मोदी के खिलाफ भादंस की धारा 217, 409, 465, 467, 468, 471 तथा 120 बी के तहत सरकार के साथ विश्वासघात तथा जाली दस्तावेज तैयार करने की साजिश में शामिल होने संबंधी मामला दर्ज करने की माग की है। पिछले माह 19 जनवरी को राज्य के मुख्य सचिव के जोती को लिखे पत्र में प्रदीप शर्मा ने आशका जताई थी कि उनके खिलाफ राजनीतिक इशारे पर सीआईडी जाच कराई जा रही है। उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया तथा जाच में पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री के प्रभाव के चलते उनके खिलाफ निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण जाच की संभावना नजर नहीं आती इसलिए यह जाच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि वे राज्य के एडीजीपी कुलदीप शर्मा के भाई है जिन्होंने गुजरात दंगा मामले में सरकार के खिलाफ कई सुबूत जाच एजेंसियों को उपलब्ध कराए है, इसलिए भी सरकार उनके साथ बदले की भावना रखती है।
जमीन घोटाले के मामले को अब प्रमुख विपक्षी दल काग्रेस ने भी हवा देना शुरू कर दिया है। प्रदेश काग्रेस अध्यक्ष सिद्धार्थ पटेल ने कहा है कि शरदोत्सव में मुख्यमंत्री के प्रचार के लिए वेलस्पन कंपनी की ओर से दिए गए 85 लाख रुपए के चेकों के मामले की जाच की जानी चाहिए।
------------------------------------------------------------------------------------------------------- बाड़मेर। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी एवं चितौड़गढ़ जिला कलक्टर रवि जैन के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने एक और परिवाद दर्ज किया है। यह परिवाद भूमि रूपान्तरण के एक मामले को लेकर दर्ज हुआ है। सूत्रों ने बताया कि जैन ने बाड़मेर कलक्टर के रूप में शहर के निकट महाबार गांव की सरहद में 27 बीघा कृषि भूमि का आवासीय प्रयोजनार्थ भू-उपयोग परिवर्तन किया। बाड़मेर निवासी खातेदार अनिल धारीवाल के आवेदन पर हुए इस भू-उपयोग परिवर्तन में अनियमितता का आरोप है।
 
उक्त 27 बीघा जमीन शिवकर लिग्नाइट परियोजना का हिस्सा होने एवं इस भूमि को अवाप्त करने की प्रक्रिया विचाराधीन होने के बावजूद भू-उपयोग परिवर्तन किया गया, जिसे हाल ही में जिला कलक्टर बाड़मेर गौरव गोयल ने खारिज भी किया।  इस प्रकरण की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत होने के बाद ब्यूरो ने इसकी जांच की और शिकायत को परिवाद के रूप में दर्ज करने योग्य माना। इस पर एसीबी मुख्यालय ने आई एस रवि जैन के खिलाफ परिवाद दर्ज किया।